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अपने शहर को देखने निकला हुं

dhillongagan2008



ये वर्णन एक शेर ने किया है जो बचपन में इंसानो की वजह से अपना जंगल छोड़ने पे मजबूर हो गया और आज वो बहुत साल बाद लॉकडाउन की वजह से अपना पुराना घर (जंगल) देखने आया है :


एक जमाने बाद कहीं सैर पे निकला हुं,

जो पहले घर था मेरा उस शहर को देखने निकला हुं।

आज जंगल में चिल्लाते आये कुछ परिंदे,

बोले घर में दबे हैं सारे के सारे दरिंदे,

इस सुबह की बात को देखने में

दोपहर में निकला हुं,

जो पहले घर था मेरा उस शहर को देखने निकला हुं।


कुछ लोग दिखे मुझे चैराहे पे

पर तादात हमसे भी कम है,

अस्पताल में भीड़ जमा है कुछ

जहां बहुत आँखें नम हैं,

इनपे जो टूट पड़ा उस कहर को

देखने निकला हुं,

जो पहले घर था मेरा उस शहर को देखने निकला हुं।


ये बरगत का पेड़ पुराना है, इसे भगवान

के डर से बचा रखा है,

वर्ना हरे-भरे स्वर्ग को हमारे

कॉन्क्रीट का शमशान बनाये रखा है,

कारखानों से फैलाया इन्होंने वो जहर

कम होने पे निकला हुं,

जो पेहले घर था मेरा उस शहर को देखने निकला हुं।


ये मातम सा सन्नाटा इनका किसी वजह

का डर है,

है क्या ये दिख नहीं रहा

मानो देवी प्राकृति का ही कहर है,

इनको मिल रही सबक की लहर देखने

निकला हुं,

जो पहले घर था मेरा उस शहर को देखने निकला हुं।


अब यादों के सिवा यहां कुछ और नहीं है,

जिस जंगल में मैं फिलहाल हुं वहां

बहुत सही है,

"इंसान को कोई रोक नही सकता" इस "वहम"

से में निकला हुं,

इनको इनके हाल पे छोड़ के इस शहर से में निकला हुं।



- सुनील ठाकुर

स्टूडेंट, हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी






 
 
 

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