
पंचायती चुनावों का दौर है ऐसे में सोशल मीडिया पर चुनावों की बातें होना संभावित है। महात्मा गांधी जी ने ऐसी हिंसक पंचायती राज व्यवस्था की कल्पना नहीं की थी जैसा कि वर्तमान में हो रहा है। हमने ग्राम सभाओं को जिस तरह की राजनीति का अखाड़ा बना दिया है उससे गांव के लोगों की एकता खत्म होती चली जा रही है। महात्मा गांधी जी ने कहा था कि यदि हमें भारत को आगे बढ़ाना है तो हमें सारी शक्ति पंचायत को देनी चाहिए क्योंकि उसी पंचायत के लोगों को पता है कि उसके गांव में किस चीज की आवश्यकता है और किस चीज की नहीं। क्योंकि भारत की 60% जनसंख्या गांव में रहती है ऐसे में शहर को गांव से तभी जोड़ पाएंगे जब गांव का विकास होगा। महात्मा गांधी जी ने कहा था कि हर एक गांव को अपने पांव पर खड़ा होना होगा अपनी जरूरतें खुद पूरी कर लेनी होगी ताकि वह अपना कारोबार खुद चला सके।
पर आज की परिस्थिति बिल्कुल भिन्न है। मैं अपने ही गांव का अनुभव आपके साथ शेयर कर रहा हूं। मैं चंबा विधानसभा क्षेत्र के बेली पंचायत का रहने वाला हूं। जब-जब चुनाव का दौर आता है तो मेरी पंचायत बेली में भी उसी तरह का माहौल बन जाता है। हर एक गांव से एक या दो कैंडिडेट खड़े हो जाते हैं और जिसने भी शराब से खुश कर दिया उसको वोट मिल जाता है। पर मेरी पंचायत के लोगों को यह पता नहीं है कि तुम एक दिन फ्री की शराब पीने के खातिर देश का कितना बड़ा नुकसान कर रहे हो। इसका आप लोग अनुमान ही नहीं लगा सकते।
मेरा अपना मानना है कि ग्राम सभाओं में इलेक्शन के दौरान एक बैठक बुलाई जाए और जो-जो भी कैंडिडेट किसी भी पद के लिए खड़े हो चाहे वह प्रधान का हो या गांव का वार्ड मेंबर ही क्यों ना हो हमे उनसे लिखित रूप में एक पत्र लिखवाना होगा की वह अपने 5 साल के कार्यकाल में क्या-क्या करने वाला है, क्या नहीं? उसके बारे में पूरा लिखित रूप में हमारे पास कॉपी उपलब्ध हो। मैं इसलिए कह रहा हूं कि जब पंचायत में चुनावों का दौर होता है तो हर एक कैंडिडेट घर में हाथ जोड़कर वोट मांगने जाता है पर आश्चर्य की बात यह है कि वह सिर्फ जब तक नतीजे नही आते तब तक तो गांव में ही आते-जाते रहते हैं, उसके बाद उनकी शक्ल तक देखने को नहीं मिलती है। मैं तो कहता हूं कि पूरे 5 साल के अंदर मेरे गांव में एक भी काम नहीं हुआ है जो कि मेरे सामने हो। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि हम वोट दें तो किसको दें और किस परिस्थिति में दें?
हम शिक्षा की बात करते हैं तो मैं अनुभव करता हूं कि गांव में इतनी ज्यादा अनपढ़ता है कि गांव के 80 % जो लोग है उनको भारत सरकार से पंचायत के लिए जो भी स्कीमें आती है उनके बारे में बिल्कुल जानकारी नहीं होती है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि हम जिस कैंडिडेट को प्रधान चुनते हैं या वार्ड मेंबर चुनते हैं क्या वह हमें भारत सरकार द्वारा जो स्कीम आती है उसके बारे में जानकारी देता है या नहीं? मेरा विचार है कि इस बार जो पंचायत के चुनाव होंगे उसमें जो प्रधान के लिए कैंडिडेट होगा कम से कम उसकी पढ़ाई +2 हो।
अंत में मैं महात्मा गांधी जी की कुछ पंक्तियां दोहराता हूं। महात्मा गांधी जी ने कहा था:
- "मैं किसी को भी अपने गंदे पांव के साथ मेरे मन में नहीं गुजरने दूंगा, मेरी अनुमति के बिना कोई भी मुझे ठेस नहीं पहुंचा सकता।"
- "पाप से घृणा करो पापी से प्रेम करो।"
- "आप मुझे जंजीरों में जकड़ सकते हैं या ताना दे सकते हैं यहां तक कि आप मेरे शरीर को नष्ट कर सकते हैं लेकिन आप कभी मेरे विचारों को कैद नहीं कर सकते।"
- "जिस दिन प्रेम की शक्ति के प्रति प्रेम पर हावी हो जाएगा दुनिया में अमन का लाभ हो जाएगा।"
- "आप अभी ना जान सके की आपके काम का क्या परिणाम हुआ लेकिन यदि आप कुछ करोगे नहीं तो परिणाम नहीं आएगा।"
सुनील ठाकुर
स्टूडेंट
मास्टर ऑफ पोलिटिकल साइंस
हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी
स्टूडेंट लीडर एबीवीपी

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